कवर्धा (छत्तीसगढ़) - जन स्वास्थ्य सहयोग, गनियारी बिलासपुर द्वारा 31 जनवरी को कोटा विकासखंड के ग्राम सराईपाली में जेवनार मेला का आयोजन किया गया। जेवनार मेला मोटे अनाज की खेती एवं खाने में उपयोग करने को बढ़ावा देने के लिए किया गया। जेवनार मेला में अचानकमार अभ्यारण क्षेत्र के 26 एवं कोटा ब्लॉक के 72 गांवों से 90 महिला समूहों एवं किसान समूहों से लगभग 1200 लोगों की टीम शामिल हुई। जेवनार मेले में 150 से ज्यादा पंरपरागत व्यंजन स्टॉल पर प्रदर्शन किये गये। जेवनार मेले का शुभारंभ परम्परागत आदिवासी नृत्य के साथ हुआ।
जेवनार मेले मिलेट यानी मोटे अनाज जैसे कोदो, कुटकी, सांवा, कंगनी, बाजरा आदि अनाजों को अपने खाने में शामिल करने के महत्व को बढ़ावा देने के लिए किया गया। जन स्वास्थ्य सहयोग से डॉ गजानन, डॉ रविन्द्र कुर्बुडे , मिनल, प्रतिष्ठा, चंद्रिमा, विशाल, डॉ.पंकज, बेन रत्नाकर, मंजू, ममता, अजय, पूर्णिमा, जगदेव, सुनील, जलेश, प्रकाशमणि, प्रफुल्ल, आकाशवाणी बिलासपुर से सुप्रिया भारतीयन , क्रांती, मलेश, बजरंग, कृष्ण, महेश, धामसिंह, कबीरधाम जिले से चंद्रकांत यादव एवं सैंकड़ों ग्रामीण जन उपस्थित रहे।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ के अनुसार स्वास्थ्य एवं भोजन का रिश्ता -
जेवनार मेला में जन स्वास्थ्य सहयोग के चिकित्सक डॉ गजानन फुटके ने बताया कि आज के दौर में पोषण विविधता बहुत जरुरी है, क्योंकि दुनिया भर में खाए जाने वाले चीजों में जंक फूड एवं कार्बोहाड्रेट युक्त खादय पदार्थों का उपयोग ज्यादा होता है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में सिर्फ चावल ही ज्यादा उगाते हैं, और खाते भी यही है। जिसके फलस्वरुप पोषण विविधता की कमी के कारण गैर संक्रमक रोग जैसे — ब्लड प्रेशर, शुगर, कैंसर आदि रोग ज्यादा देखने को मिल रहे हैं। इसलिए परंपरागत खेती एवं अनाजों को उगाना और अपने भोजन में शामिल करना बेहद जरुरी है।
किसान का दर्जा महिलाओं को मिले-
सामाजिक कार्यकर्ता अनिल बामने ने बताया कि खेती का काम महिलाऐं ज्यादा करती है, फिर भी महिलाओं को किसान का दर्जा आज भी नहीं देते हैं। इसलिए जेवनार मेला के माध्यम से महिला किसानों को मुख्यधारा में जोड़ने का प्रयास है। अपने परम्परागत ज्ञान को सहेजना बहुत जरुरी है। आने वाली पीढ़ियों को परम्परागत ज्ञान एवं पोषण विविधता के महत्व का संरक्षण व संर्वधन करने के लिए प्रेरित करना है।
कोदो कुटकी अब सुपर फूड के नाम से हो रही प्रसिद्ध-
5 - 6 दशकों पहले मोटे अनाजों की खेती ग्रामीण क्षेत्रों में हुआ करती थी, जो अब विलुप्तिकरण की कगार पर है। पहले लोगों को लगता था, कि कोदो कुटकी गरीबों का खाना है, परंतु अब शहरों और अमीर लोगों के बीच मेंं यह सुपर फूड के नाम से प्रसिद्ध हो गये हैं। आज हम सिर्फ स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी के दम पर रोगों से नहीं लड़ सकतें हमें पोषण विविधता के लिए बहुफसलीय खेती करना ही होगा। जिसमें मोटे अनाज मुख्य रुप से शामिल हो और खेत से लोगों के पेट तक भी जाए।
*क्या है जेवनार मेला* -
छत्तीसगढ़ी में भोजन को जेवन कहते हैं। इसी से बना है जेवनार। जेवनार मेला में गांव के लोगों द्वारा अपने खानपान, भोजन विविधता को प्रदर्शित करते हैं। जिससे समाज को यह संदेश देते हैं कि भोजन मानव जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण है। प्राचीन काल में भोजन विविधता और पकाने खाने की विधि बहुत ही स्वास्थ्य और मानव जीवन के लिए लाभप्रद होती थी। धीरे धीरे विलुप्त होने की स्थिति आ गई है, पुनः ऐसे अनाजों, भोजन और पद्धतियों को अपनाने के लिए जेवनार मेला में भोजन, खानपान को पकवान एवं व्यंजनों के रूप में प्रदर्शित करते हैं। जेवनार मेला में भोजन विविधता की प्रदर्शनी मात्र नहीं बल्कि सैंकड़ों प्रकार के व्यंजनों का स्वाद भी प्राप्त होता है।
*ग्रामीणों एवं वालंटियर का अभूतपूर्व योगदान* -
जेवनार मेला का आयोजन ग्राम सराईपाली के ग्रामीणों एवं युवा वालंटियर टीम की सराहनीय भागीदारी से सम्पन्न हुआ। ग्रामीणों के द्वारा भोजन व्यवस्था, साज सज्जा एवं जेवनार मेला में प्रदर्शनी और भोजन स्वाद आनंद की बेहतरीन व्यवस्था किया गया।
*कबीरधाम के PVTGs बैगा जनजाति भी हुए शामिल* -
जेवनार मेला में प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी कबीरधाम जिले के विकासखंड बोड़ला तरेगांव जंगल कलस्टर क्षेत्र से PVTGs बैगा जनजाति के प्रतिनिधि सदस्य शामिल हुए। जिसमें श्रीमती श्रीबाई बैगा, श्री कोमल सिंह धारवैया एवं श्री चंद्रकांत यादव कार्यकारी निदेशक ग्रामोदय ग्राम विकास समिति, कवर्धा जिला कबीरधाम छत्तीसगढ़ शामिल हुए। ज्ञात हो कि श्रीमती श्रीबाई बैगा जो कि बीज संरक्षण के लिए बहुत ही सराहनीय एवं उल्लेखनीय कार्य कर रही है, उनके द्वारा जेवनार मेला में बीज प्रदर्शनी का अवलोकन कर बीजों की संरक्षण एवं संवर्धन पर चर्चा भी किया गया।


